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ग़ज़ल
क़लंदर ख़ानक़ाह-ओ-मदरसा में मस्त है लेकिन
ये मस्ती फ़क़्र-ए-बू-बकर-ओ-अली लगती नहीं मुझ को
सय्यद अमीन अशरफ़
नज़्म
तुलू-ए-इस्लाम
दिगर शाख़-ए-ख़लील अज़ ख़ून-ए-मा नमनाक मी गर्दद
ब-बाज़ार-ए-मोहब्बत नक़्द-ए-मा कामिल अय्यार आमद
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
खुल गए तो बू-ए-मा'नी हर तरफ़ उड़ती फिरी
बंद हो कर लफ़्ज़ 'बाक़र' नुत्क़ पर ताले हुए
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
ज़फ़र अली ख़ाँ
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नज़्म
नक़्श बर-दीवार
उवैस ओ बू-ज़र ओ उस्मान के अता-कर्दा
मज़ाक़-ए-फ़क़्र-ए-मोहम्मद ज़रूर खो बैठे
बेबाक भोजपुरी
नज़्म
दिल्ली पे क़ुर्बान
बहार-ए-बे-ख़िज़ाँ दिल्ली पे क़ुर्बां
निशात-ए-जावेदाँ दिल्ली पे क़ुर्बां
इज़हार मलीहाबादी
ग़ज़ल
ग़म-ए-दिल को बहार-ए-बे-ख़िज़ाँ कहना ही पड़ता है
मोहब्बत को हयात-ए-जावेदाँ कहना ही पड़ता है