aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "farog-e-lab-e-baam"
डायरेक्टर क़ौमी कौंसिल बरा-ए-फ़रोग़-ए-उर्दू ज़बान, नई दिल्ली
पर्काशक
फ़रोग़-ए-उर्दू
शायर
इदारा फ़रोग़-ए-उर्दू, लखनऊ
इदारा-ए-फ़रोग़-ए-उर्दू, लाहौर
फ़रोग़े-मरसिया इन्टरनेशनल, कनाडा
अंजुमन फ़रोग़-ए-उर्दू, पुणे
अंजुमन फ़रोग़-ए-अदब, रुड़की
मकतबा फ़रोग़-ए-इस्लाम,लखनऊ
अंजुमन फ़रोग़-ए-उर्दू, दिल्ली
फ़रोग़े-अदब अकादमी, गुजरांवाला
अंजुमन फ़रोग़-ए-अदब, दिल्ली
इदारा फरोग़-ए-अदब, दिल्ली
इदारा फ़रोग़-ए-उर्दू, दिल्ली
अकादमी फ़रोग़-ए-नेमत, पाकिस्ताना
इदारा-ए-फ़रोग-ए-तसव्वुफ़, मेरठ
सर-ए-तूर जिस की जूया थी निगाह-ए-चश्म-ए-मूसावही इक झलक फ़रोग़-ए-लब-ए-बाम बन के आई
दिल महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम नहीं हैपैग़ाम ब-अंदाज़-ए-पैग़ाम नहीं है
कोई सर्द हवा लब-ए-बाम चलीफिर ख़्वाहिश-ए-बे-अंजाम चली
ख़्वाब देखूँ कोई महताब लब-ए-बाम उतरेयूँ भी हो जाए मुराद-ए-दिल-ए-नाकाम उतरे
नज़्ज़ारा जो होता है लब-ए-बाम तुम्हारादुनिया में उछलता है बहुत नाम तुम्हारा
आज के शराब पीने वाले साक़ी को क्या जानें, उन्हें क्या पता साक़ी के दम से मयख़ाने की रौनक कैसी होती थी और क्यूँ मय-ख़्वारों के लिए साक़ी की आँखें शराब से भरे हुए जामों से ज़्यादा लज़्ज़त अंगेज़ीज़ और नशा-आवर होती थीं। अब तो साक़ी बार के बैरे में तब्दील हो गया है। मगर क्लासिकी शायरी में साक़ी का एक वसी पस-ए-मंज़र होता था। हमारा ये शेरी इंतिख़ाब आपको साक़ी के दिल-चस्प किरदार से मुतआरिफ़ कराएगा।
महबूब के लबों की तारीफ़-ओ-तहसीन और उनसे शिकवे-शिकायत शायरी में आम है। लबों की ख़ूबसूरती और उनकी ना-ज़ुकी के मज़मून को शायेरों ने नए नए दढिंग से बाँधा है । लबों के शेरी बयान में एक पहलू ये भी रहा है कि उन पर एक गहरी चुप पड़ी हुई है, वो हिलते नहीं आशिक़ से बात नहीं करते। ये लब कहीं गुलाब की पंखुड़ी की तरह नाज़ुक हैं तो कहीं उनसे फूल झड़ते हैं। इस मज़मून में और भी कई दिल-चस्प पहलू हैं। हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़िए।
बीसवीं सदी का आरम्भिक दौर पूरे विश्व के लिए घटनाओं से परिपूर्ण समय था और विशेष तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप के लिए यह एक बड़े बदलाव का युग था। नए युग की शुरुआत ने नई विचारधाराओं के लिए ज़मीन तैयार की और पश्चिम की विस्तारवादी आकांछाओं को गहरा आघात पहुँचाया। इन परिस्थितियों ने उर्दू शायरी की विषयवस्तु और मुहावरे भी पूरी तरह बदल दिए और इस बदलाव की अगुआई का श्रेय निस्संदेह अल्लामा इक़बाल को जाता है। उन्होंने पाठकों में अपने तेवर, प्रतीकों, बिम्बों, उपमाओं, पात्रों और इस्लामी इतिहास की विभूतियों के माध्यम से नए और प्रगतिशील विचारों की ऎसी ज्योति जगाई जिसने सब को आश्चर्यचकित कर दिया। उनकी शायरी की विश्व स्तर पर सराहना हुई साथ ही उन्हें विवादों में भी घसीटा गया। उन्हें पाठकों ने एक महान शायर के तौर पर पूरा - पूरा सम्मान दिया और उनकी शायरी पर भी बहुत कुछ लिखा गया है। उन्होंने बच्चों के लिए भी लिखा है और यहां भी उन्हें किसी से कमतर नहीं कहा जा सकता। 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' और 'लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी' जैसी उनकी ग़ज़लों - नज़्मों की पंक्तियाँ आज भी अपनी चमक बरक़रार रखे हुए हैं। यहां हम इक़बाल के २० चुनिंदा अशआर आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। अगर आप हमारे चयन को समृद्ध करने में हमारी मदद करना चाहें तो आपका रेख्ता पर स्वागत है।
Lab-e-Bam
आदिल रशीद
रोमांटिक
Harf-e-Zer-e-Lab
निकहत बरेलवी
काव्य संग्रह
Ghalib Number: Shumara Number-007, 008
मोहम्मद हुसैन शम्स अल्वी
फ़रोग़-ए-उर्दू, लखनऊ
Prem Chand Number
Mohsin Kakorvi Number : Shumara Number-001,002
Lab-e-Goya
आग़ा बाबर
अफ़साना
Zer-o-Bam
फ़ारिग़ बुख़ारी
Farogh-e-Iqbal
इफ़्तिख़ार अहमद सिद्दीक़ी
Faseel-e-Lab
रशीद क़ैसरानी
ग़ज़ल
Harf Zer-e-Lab
Farogh-e-Marsiya
असग़र मेहदी अशर
जीवनी
Jumbish-e-Lab
सैयद ज़हीर जाफ़री
ज़ेर-ए-लब
सफ़िया अख़्तर
इतिहास एवं समीक्षा
Khanda-e-Zer-e-Lab
तबस्सुम आज़मी
गद्य/नस्र
Lab-e-Mumas
जाबिर हुसैन
नज़्म
तन्हाइयों में जब वो लब-ए-बाम आए हैंशर्मिंदगी से शम्स-ओ-क़मर झिलमिलाए हैं
शायद आ जाए किसी वक़्त लब-ए-बाम वो चाँदशाम से सुबह तलक बंद दरीचा न किया
बिच्छा है पलंग आज लब-ए-बाम किसी कातड़पाएगा शब-भर मुझे आराम किसी का
चराग़-ए-'इश्क़ लब-ए-बाम छोड़ आया हूँरह-ए-वफ़ा में तिरा नाम छोड़ आया हूँ
चाँद निकला है सर-ए-बाम लब-ए-बाम आओदिल में अंदेशा-ए-अंजाम न आने पाए
कल शाम लब-ए-बाम जो वो जल्वा-नुमा थाकिस शौक़ से मैं दूर खड़ा देख रहा था
जल रहा है जो लब-ए-बाम अभी एक चराग़बुझ गया ये भी तो फिर रात मुकम्मल होगी
क़ुमक़ुमा है कि लब-ए-बाम लिए बैठी हैतीरगी अपनी हथेली पे उजाले की डली
उस कू मैं हुए हम वो लब-ए-बाम न आयाऐ जज़्बा-ए-दिल तू भी किसी काम न आया
बे-पर्दा हो के जब वो लब-ए-बाम आ गयाआँखों पे मेरी दीद का इल्ज़ाम आ गया
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