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ग़ज़ल
क़फ़स को शाम से लटका के फ़र्श-ए-ख़्वाब के पास
सुना किया मिरी ता-सुब्ह दास्ताँ सय्याद
रिन्द लखनवी
अप्रचलित शेर
ना-तवाई ने न छोड़ा बस कि पेश अज़ अक्स-ए-जिस्म
मुफ़्त वा गुस्तरदनी है फ़र्श-ए-ख़्वाब आईने पर
मिर्ज़ा ग़ालिब
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ग़ज़ल
किया है दीदा-ए-अंजाम मैं ने आगह-ए-राज़
बिसात-ए-दहर 'मुनव्वर' है फ़र्श-ए-ख़्वाब मुझे
मुनव्वर लखनवी
ग़ज़ल
नस्ब करें मेहराब-ए-तमन्ना दीदा ओ दिल को फ़र्श करें
सुनते हैं वो कू-ए-वफ़ा में आज करेंगे नुज़ूल मियाँ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
है सौ अदाओं से उर्यां फ़रेब-ए-रंग-ए-अना
बरहना होती है लेकिन हिजाब-ए-ख़्वाब के साथ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
किस ख़ता पर ये उठाना पड़ी रातों की सलीब
हम ने देखा था अभी ख़्वाब-ए-सहर ही कितना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
ये रंग पाश हुए हैं वो आज ऐ 'नादिर'
है फ़र्श-ए-बज़्म-ए-तरब लाला-ज़ार होली में