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ग़ज़ल
नाज़-ए-बुत-ए-महवश पर क़ुर्बान दिल-ओ-जाँ है
ये शान-ए-ख़ुदा शाहिद-ए-ग़ारत-गर-ए-ईमाँ है
अली मंज़ूर हैदराबादी
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ग़ज़ल
जब वो ग़ारत-गर-ए-ईमाँ है तो हैरत क्या है
दैर में जुब्बा बिके का'बे में ज़ुन्नार बिके
क़ुर्बान अली सालिक बेग
ग़ज़ल
अर्सा-ए-हश्र में पुर्सिश जो हुई उस बुत की
मेरे ही दिल में वो ग़ारत-गर-ए-ईमाँ निकला
जिगर बिसवानी
ग़ज़ल
हमें आज़ादी-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र का इद्दआ तो है
कोई ग़ारत-गर-ए-ईमाँ अगर आज़ाद रहने दे
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
यूँ तो हैं सारे बुताँ ग़ारत-गर-ए-ईमाँ-ओ-दीं
एक वो काफ़िर सनम नाम-ए-ख़ुदा क्या चीज़ है
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
किसी के वास्ते सर्माया-ए-दुनिया-ओ-दीं ठहरें
वही नज़रें जिन्हें ग़ारत-गर-ए-ईमाँ भी कहते हैं