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ग़ज़ल
हम को ख़याल-ए-ख़िदमत-ए-अह्ल-ए-जहाँ तो है
ताक़त नहीं है पाँव में मुँह में ज़बाँ तो है
मुसव्विर लखनवी
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शेर
यूँ ही गर रोता रहा 'ग़ालिब' तो ऐ अहल-ए-जहाँ
देखना इन बस्तियों को तुम कि वीराँ हो गईं