aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "gand marna"
सब ने माना मरने वाला दहशत-गर्द और क़ातिल थामाँ ने फिर भी क़ब्र पे उस की राज-दुलारा लिक्खा था
वो क्या कुछ न करने वाले थेबस कोई दम में मरने वाले थे
तमाम कुम्बा नहीं एक फ़र्द बाक़ी हैफ़क़त जली हुई बस्ती की गर्द बाक़ी है
बिछड़ के तुझ से किसी दूसरे पे मरना हैये तजरबा भी इसी ज़िंदगी में करना है
क्यों मुझ को घनी छाँव में मरने नहीं देताक्यों धूप की सरहद से गुज़रने नहीं देता
किसी दश्त ओ दर से गुज़रना भी क्याहुए ख़ाक जब तो बिखरना भी क्या
गर्द को भी मैं उस की पा न सकायार-ए-मोटर-ख़िराम ने मारा
कहाँ कहाँ से गुज़र रहा हूँमैं आँधियों में बिखर रहा हूँ
एक के बअ'द एक कई मौतें मर करअब मैं ज़िंदा हो गया हूँ
फीके फीके ज़र्द ग़मों कादिल कुश्ता है सर्द ग़मों का
गाँव रफ़्ता रफ़्ता बनते जाते हैं अब शहरक़र्या क़र्या फैल रहा है तन्हाई का ज़हर
सुब्ह-ए-नौ का ख़याल करते हैंशब-गज़ीदा कमाल करते हैं
मरना तक़दीर है ज़ंजीर बजा लो पहलेकुछ हो सय्याद से आँखें तो मिला लो पहले
बाँधे अगर जो दुनिया किसी डोर से मुझेतो खींच लेना अपनी तरफ़ ज़ोर से मुझे
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