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शेर
किन गुज़रगाहों के हैं गर्द-ओ-ग़ुबार आँखों में
रोज़ पतझड़ के हमें ख़्वाब दिखाती है हवा
शहज़ाद अंजुम बुरहानी
ग़ज़ल
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
कहीं और बाँट दे शोहरतें कहीं और बख़्श दे इज़्ज़तें
मिरे पास है मिरा आईना मैं कभी न गर्द-ओ-ग़ुबार लूँ
बशीर बद्र
ग़ज़ल
सर-बुलंदी हमें मिल सकती है लेकिन ऐ 'ग़ुबार'
आज मिल्लत के जवानों में तग-ओ-ताज़ नहीं