aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "garra-e"
नुमाइंदा किताब घर, यू. पी.
पर्काशक
बज़्म-ए-अदब, गया
शबिस्तान-ए-अदब, गया
बज़्म-ए-मगध, गया
मजलिस मुसन्निफ़ीन-ए-इस्लामी, गया
हिदायत गढ़ मज्लिस-ए-तालीमी, मिर्ज़ापुर, उ. प्र.
शोबा-ए-उर्दू मगध यूनिवर्सिटी, गया
मतबूआ तबा अहल-ए-जहाँ, गया
इदारा फ़िक्र-ए-नौ, करीम गंज, गया
ख़ानक़ाह-ए-बुरहानिया कमालिया देवरा शरीफ़, गया
नग़मा-ए-हयात बरा-ए-मक्तबतुल हयात, गया
अदब-ए-लतीफ़ इशाअत घर, ताशकंद
कारपर्दाज़ाने-उर्दू किताब घर, लाहौर
क़ौमी किताब घर, देवबंद, उ.प्र.
ग़र्रा-ए-औज-ए-बिना-ए-आलम-ए-इमकाँ न होइस बुलंदी के नसीबों में है पस्ती एक दिन
शोला-ए-तारीख़ की ज़द पर है ताज-ए-ख़ुसरवीग़र्रा-ए-तक़दीर-ए-सुल्ताँ बेचता फिरता हूँ मैं
ये हुस्न ये जवानी मेहमाँ है चंद रोज़ाइस पर न कर ये ग़र्रा ओ आन-बान वाले
ये ग़र्रा-ए-रजब से वफ़ूर-ए-शराब होख़ाली के बा'द तक भी तबीअत भरी रहे
कहाँ का ग़र्रा-ए-शवाल कैसा अश्रा ज़ी-हिज्जाहमें हाथ आए मय जिस दिन हम उस दिन ईद करते हैं
घर के मज़मून की ज़्यादा-तर सूरतें नई ज़िंदगी के अज़ाब की पैदा की हुई हैं। बहुत सी मजबूरियों के तहत एक बड़ी मख़लूक़ के हिस्से में बे-घरी आई। इस शायरी में आप देखेंगे कि घर होते हुए बे-घरी का दुख किस तरह अंदर से ज़ख़्मी किए जा रहा है और रूह का आज़ार बन गया है। एक हस्सास शख़्स भरे परे घर में कैसे तन्हाई का शिकार होता है, ये हम सब का इज्तिमाई दुख है इस लिए इस शायरी में जगह जगह ख़ुद अपनी ही तस्वीरें नज़र आती हैं।
Gard-e-Rah
अख़्तर हुसैन रायपुरी
आत्मकथा
Surat Garan-e-Deccan
Ghaar-e-Hira Mein Ek Raat
मुस्तनसिर हुसैन तारड़
Gard-e-Mahtab
अहमद मुश्ताक़
काव्य संग्रह
Ghaza-e-Rooh
Gard-e-Karwan
कन्हैया लाल कपूर
हास्य-व्यंग
Gard-e-Malal
हमीद नसीम
Gard-e-Masafat
मोहसिन भोपाली
Soorat Garan-e-Deccan
पत्रकारिता
Gard-e-Raah
ज़िया फ़तेहाबादी
Galla-e-Safoora
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
कविता
गर्द-ए-राह
शाइरी
गर्द-ए-अावारगी
निगार अज़ीम
सफ़र-नामा / यात्रा-वृतांत
Ghaza-e-Rukhsar-e-Sahar
सामाजिक
حضرات! یہ جلسہ ہماری ادب کی تاریخ میں ایک اہم واقعہ ہے، ہماری سمیلنوں اور انجمنوں میں اب تک عام طور پر زبان اور اس کی اشاعت سے بحث کی جاتی رہی ہے۔ یہاں تک کہ اردو اور ہندی کا جو لٹریچر موجود ہے، اس کا منشا خیالات اور جذبات...
छुट के घर आ गए असीर तिरेलेकिन अब इन को कौन पहचाने
हमारा नाम पुकारे हमारे घर आएये दिल तलाश में जिस की है वो नज़र आए
गदा-ए-शहर-ए-आइंदा तही-कासा मिलेगातजावुज़ और तन्हाई की हद पर क्या मिलेगा
मेरे घर आई एक नन्ही परीचाँदनी के हसीन रथ पे सवार
झूम कर आज जो मतवाली घटा आई हैयाद क्या क्या तिरी मस्ताना अदा आई है
यार गर्म-ए-मेहरबानी हो गयादुश्मन-ए-जानी था जानी हो गया
बादल घर घर आए नानदिया हम हम गाय ना
फिर मिरे एहसास नेमुझ को
गर्द-ए-रह-ए-कारवाँ रहे हैंहम मंज़िलों के निशाँ रहे हैं
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