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नज़्म
'महावीर'
अब्र-ए-गौहर-बार बन कर हिन्द में आया था तू
अहल-ए-दुनिया के लिए पैग़ाम-ए-हक़ लाया था तू
सुदर्शन कुमार वुग्गल
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नज़्म
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ
क्यूँ न एडीटर बनूँ अख़बार-ए-गौहर-बार का
और क़लम को रूप दूँ चलती हुई तलवार का
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
नक़्क़ाद
कैफ़ में इक ''लग़्ज़िश-ए-पा'' किल्क-ए-गौहर-बार की
''इज़्तिरारी एक जुम्बिश सी'' लब-ए-गुफ़्तार की
जोश मलीहाबादी
नज़्म
नज़्र-ए-ख़ालिदा
ज़ोफ़ दिखलाई है जब भी फ़ितरत-ए-अहरार ने
आग बरसा दी है तेरे नुत्क़-ए-गौहर-बार ने
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
शाहिद-ए-गुल मोतियों में लद रहे हैं आज-कल
अब्र-ए-तर रहता है गौहर-बार क़ैसर-बाग़ में