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ग़ज़ल
किस ने वस्ल का सूरज देखा किस पर हिज्र की रात ढली
गेसुओं वाले कौन थे क्या थे उन को क्या जतलाओगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
कहाँ मेरे दिल की हसरत, कहाँ मेरी ना-रसाई
कहाँ तेरे गेसुओं का, तिरे दोश पर बिखरना
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
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ग़ज़ल
तिरी दीद से सिवा है तिरे शौक़ में बहाराँ
वो चमन जहाँ गिरी है तिरे गेसुओं की शबनम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
क्लर्क का नग़्मा-ए-मोहब्बत
और इन सब में इक मैं भी हूँ लेकिन बस तू ही नहीं
हैं और तो सब आराम मुझे इक गेसुओं की ख़ुशबू ही नहीं
मीराजी
ग़ज़ल
मिरे बाज़ुओं में आ कर तिरा दर्द चैन पाए
तिरे गेसुओं मैं छुप कर मैं जहाँ के ग़म भुला दूँ