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ग़ज़ल
ग़िज़ा-ए-रूह है ऐ हुस्न तू अपनी मलाहत से
हर इक के ज़ाइक़े में ठीक है आब-ओ-नमक तेरा
शाद अज़ीमाबादी
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नज़्म
गुलहा-ए-अक़ीदत
कैसे कैसे अक़्ल को दे कर दिलासे जान-ए-जाँ
रूह को तस्कीन दी है दिल को समझाया भी है
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
हम राह-रव-ए-मंज़िल दुश्वार रहे हैं
हर तरह मुसीबत में गिरफ़्तार रहे हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
नज़्म
शाम है धुआँ धुआँ
उड़ती थी क़बा-ए-जिस्म वहीं
बेचैन हुई फिर रूह बहुत
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
दिल है ग़िज़ा-ए-रंज जिगर है ग़िज़ा-ए-रंज
पैदा किया है हम को ख़ुदा ने बरा-ए-रंज