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ग़ज़ल
न तर्ज़-ए-ख़ास न अंदाज़-ए-गुल-फ़िशाँ ले कर
पुकारता हूँ मैं तुझ को तिरी ज़बाँ ले कर
क़ैसर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
जब ज़रा नग़्मों से बुलबुल गुल-फ़िशाँ हो जाएगा
टोकरी फूलों की सारा आशियाँ हो जाएगा
क़द्र बिलग्रामी
ग़ज़ल
हर ज़र्रा गुल-फ़िशाँ है नज़र चूर चूर है
निकले हैं मय-कदे से तो चेहरे पे नूर है
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
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ग़ज़ल
जो तबस्सुमों से हो गुल-फ़शाँ वही लब हँसी को तरस गए
हमीं शहरयार-ए-हयात थे हमीं ज़िंदगी को तरस गए
पयाम फ़तेहपुरी
नज़्म
उर्दू
फ़रोग़-ए-चश्म है तस्कीन-ए-दिल है बे-गुमाँ उर्दू
हर इक आलम में है गोया बहार-ए-गुल-फ़िशाँ उर्दू