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ग़ज़ल
हमारी सैर को गुलशन से कू-ए-यार बेहतर था
नफ़ीर-ए-बुलबुलों से नाला-हा-ए-ज़ार बेहतर था
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
नज़्म
दावत-ए-इंक़िलाब
वो ख़ाक हो कि जिस में मिलें रेज़ा-हा-ए-ज़र
वो संग बन कि जिस से निकलते हैं लाल-ए-नाब
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
ग़ज़ल
पानी पानी हो गया जोश अब्र-ए-दरिया-बार का
देख कर तूफ़ाँ हमारे दीदा-हा-ए-ज़ार का
दत्तात्रिया कैफ़ी
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कुल्लियात
बाग़ से ले दश्त तक रखते हैं इक शोर-ए-अजब
हम असीरान-ए-क़फ़स के नाला-हा-ए-ज़ार-ए-दिल
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
अलम-नशरह हुआ सिर्र-ए-ख़फ़ी हिज़्यान-ए-मस्ती में
असर था 'ज़ार' ये शुर्ब-ए-शराब-ए-हाल-ए-विज्दाँ का
पंडित त्रिभुवननाथ ज़ुतशी ज़ार देहलवी
ग़ज़ल
इसी मिट्टी का ग़म्ज़ा हैं मआरिफ़ सब हक़ाएक़ सब
जो तुम चाहो तो इस जुमले को लौह-ए-ज़र पे लिख देना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
कैसे करूँ मैं ज़ब्त-ए-राज़ तू ही मुझे बता कि यूँ
ऐ दिल-ए-ज़ार शरह-ए-राज़ मुझ से भी तू छुपा कि यूँ
एस ए मेहदी
ग़ज़ल
बार-हा जी में ये आई उम्र-ए-रफ़्ता से कहूँ
शाम होने को है ऐ भूले मुसाफ़िर घर तो आ
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
नज़्म
ज़ंजीर
सालहा बे-दस्त-ओ-पा हो कर बुने हैं तार-हा-ए-सीम-ओ-ज़र
उन के मर्दों के लिए भी आज इक संगीन जाल
नून मीम राशिद
शेर
चुभेंगे ज़ीरा-हा-ए-शीशा-ए-दिल दस्त-ए-नाज़ुक में
सँभल कर हाथ डाला कीजिए मेरे गरेबाँ पर