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ग़ज़ल
है हर्फ़-शनासी किसी आईने की मानिंद
पत्थर कोई पड़ जाए तो सब हर्फ़ बिखर जाएँ
ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद
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ग़ज़ल
न ख़ुद-शनासी अगर हो तो क्या नशात-ए-इश्क़
रक़म न हो तो क्या हर्फ़-ए-नवा में रक्खा है
कृष्ण कुमार तूर
नज़्म
पस-ए-तक़रीब-ए-मुलाक़ात
बे-नियाज़ाना तख़ातुब में परेशाँ सा तिरे
गोश-ए-लब पे कोई हर्फ़ शनासाई का
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
मरसिए
दौलत-ए-लब से फिर ऐ ख़ुसरव-ए-शीरीं-दहनाँ
आज अर्ज़ां हो कोई हर्फ़ शनासाई का