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ग़ज़ल
तुम्हारे हुस्न से सोने के हो गए हैं हुरूफ़
तो शाइ'रों में भी इफ़रात-ए-ज़र को देखते हैं
सफ़वत अली सफ़वत
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ग़ज़ल
इफ़रात-ए-माल-ओ-ज़र तो है 'क़ासिद' वबाल-ए-जाँ
हाथ आए मुझ को हस्ब-ए-ज़रूरत ख़ुदा करे
रियाज़ क़ासिद
ग़ज़ल
अलम-नशरह हुआ सिर्र-ए-ख़फ़ी हिज़्यान-ए-मस्ती में
असर था 'ज़ार' ये शुर्ब-ए-शराब-ए-हाल-ए-विज्दाँ का
पंडित त्रिभुवननाथ ज़ुतशी ज़ार देहलवी
ग़ज़ल
इसी मिट्टी का ग़म्ज़ा हैं मआरिफ़ सब हक़ाएक़ सब
जो तुम चाहो तो इस जुमले को लौह-ए-ज़र पे लिख देना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
कैसे करूँ मैं ज़ब्त-ए-राज़ तू ही मुझे बता कि यूँ
ऐ दिल-ए-ज़ार शरह-ए-राज़ मुझ से भी तू छुपा कि यूँ