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ग़ज़ल
आँखों आँखों में मोहब्बत का पयाम आ ही गया
मर्हबा इज़्न-ए-विदा-ए-नंग-ओ-नाम आ ही गया
रशीद शाहजहाँपुरी
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नज़्म
अगर यही है शायरी तो शायरी हराम है!
ब-ज़िद हैं फिर भी कज-नज़र हयात शाद-काम है
नुमाइश-ओ-नुमूद-ओ-नंग-ओ-नाम पर निगाह है!
मोहसिन भोपाली
ग़ज़ल
मिटा दे ख़ुद-परस्ती को जो मय वो मय अता कर दे
वो मय जिस से न हो परवा-ए-नंग-ओ-नाम ऐ साक़ी
मेहदी मछली शहरी
ग़ज़ल
हवस होगी असीर-ए-हल्क़ा-ए-नेक-ओ-बद-ए-आलम
मोहब्बत मावरा-ए-फ़िक्र-ए-नंग-ओ-नाम है साक़ी