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ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
क्या पिघलता जो रग-ओ-पै में था यख़-बस्ता लहू
वक़्त के जाम में था शोला-ए-तर ही कितना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
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ग़ज़ल
हट जाए इक तरफ़ बुत-ए-काफ़िर की राह से
दे कोई जल्द दौड़ के महशर को इत्तिलाअ
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ज़ख़्म देते जाएँ लेकिन फ़िक्र-ए-मरहम भी करें
दर्द जब हद से सिवा हो जाए तो कम भी करें