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कुल्लियात
किस जद्द-ओ-कद से हैफ़ है मुझ को किया शिकार
ठहरा न फिर वो सैद-फ़गन इस शिकार पास
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
क़ाइल ब-दिल हूँ तब अमल-ए-हुब का मैं कि जब
उस शोख़ से ब-जद्द-ओ-कद-ए-आमिलाँ मिलूँ
जुरअत क़लंदर बख़्श
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ग़ज़ल
दस्त-ए-क़ातिल में कोई तेग़ न ख़ंजर होता
मिरा साया जो मिरे क़द के बराबर होता
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
शेर
किसी के जाल में आ कर मैं अपना दिल गँवा बैठा
मुझे था इश्क़ क़ातिल से मैं अपना सर कटा बैठा
बाबर रहमान शाह
ग़ज़ल
किसी के जाल में आ कर मैं अपना दिल गँवा बैठा
मुझे था इश्क़ क़ातिल से मैं अपना सर कटा बैठा