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नज़्म
सती
ऐ सती ऐ जल्वा-गाह-ए-शोला-ए-तनवीर-ए-हुस्न
पाक-दामानी का नक़्शा है तिरी तस्वीर-ए-हुस्न
सुरूर जहानाबादी
ग़ज़ल
अज़ल में हो न हो ये जल्वा-गाह-ए-रू-ए-जानाँ था
कि सुब्ह-ए-हश्र भी ख़ुर्शीद का आईना लर्ज़ां था
बेख़ुद मोहानी
ग़ज़ल
ग़म तिरा जल्वा-गह-ए-कौन-ओ-मकाँ है कि जो था
या'नी इंसान वही शो'ला-ब-जाँ है कि जो था
फ़िराक़ गोरखपुरी
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ग़ज़ल
अव्वल तो जल्वा-गाह में दिल की बिसात क्या
दिल है जुनूँ-नवाज़ तो फिर एहतियात क्या
इफ़्तिख़ार अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
अब इम्तियाज़-ए-जल्वा-गह-ओ-जल्वा-गर कहाँ
मेरी नज़र में पर्दा-ए-शम्स-ओ-क़मर कहाँ
अमजद अली ग़ज़नवी
शेर
ख़ुदा जाने ये दुनिया जल्वा-गाह-ए-नाज़ है किस की
हज़ारों उठ गए लेकिन वही रौनक़ है मज्लिस की
अज्ञात
ग़ज़ल
जल्वा-गाह-ए-दिल में मरते ही अँधेरा हो गया
जिस में थे जल्वे तिरे वो आइना क्या हो गया