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ग़ज़ल
यूँही गर लुत्फ़ तुम लेते रहोगे ख़ूँ बहाने में
तो बिस्मिल ही नज़र आएँगे हर सू इस ज़माने में
रिफ़अत सेठी
ग़ज़ल
ज़मीं तक ही नहीं चर्चा तिरा अब आसमाँ तक है
कभी तो सोच दिल में जोर की शोहरत कहाँ तक है
साहिर सियालकोटी
ग़ज़ल
मैं ने कहा था आज न जाएँ घोड़े बेहद थके हुए हैं
उस ने कहा था जाना तय है दुश्मन पीछे लगे हुए हैं
मोईन निज़ामी
नज़्म
डॉज-महल
डॉज के नाम से जानाँ तुझे उल्फ़त ही सही
डॉज होटल से तुझे ख़ास अक़ीदत ही सही
सरफ़राज़ शाहिद
ग़ज़ल
ऐ बुलबुल-ए-दिल दौड़ के जानाँ कूँ पहुँच तूँ
वीराना-ए-तन छोड़ गुलिस्ताँ कूँ पहुँच तूँ