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ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
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ग़ज़ल
अरे ओ आसमाँ वाले बता इस में बुरा क्या है
ख़ुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुज़र जाएँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सुना है
दरख़्तों की घनी छाँव में जा कर लेट जाता है
हवा के तेज़ झोंके जब दरख़्तों को हिलाते हैं
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
हिरास
रात की सर्द ख़मोशी में हर इक झोंके से
तेरे अन्फ़ास तिरे जिस्म की आँच आती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
आदमी-नामा
झमके तमाम ग़र्ब से ले ता-ब-शर्क़ हैं
कम-ख़्वाब ताश शाल दो-शालों में ग़र्क़ हैं