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ग़ज़ल
आबला ख़ार-ए-सर-ए-मिज़्गाँ ने फोड़ा साँप का
सेली-ए-ज़ुल्फ़-रसा ने कल्ला तोड़ा साँप का
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
फ़ना का होश आना ज़िंदगी का दर्द-ए-सर जाना
अजल क्या है ख़ुमार-ए-बादा-ए-हस्ती उतर जाना
चकबस्त बृज नारायण
शेर
गुलचीं बहार-ए-गुल में न कर मन-ए-सैर-ए-बाग़
क्या हम ग़ुबार दामन-ए-बाद-ए-सबा के हैं
अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी
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ग़ज़ल
वो तुर्बत-ए-आशिक़ पर मुँह ढाँप कर आए हैं
अल्लाह रे शर्म उन की अल्लाह रे रू-पोशी