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ग़ज़ल
हदें फैलीं नज़र की फिर भी कम-बीनी नहीं जाती
कि हर सूरत अभी एक आँख से देखी नहीं जाती
इज्तिबा रिज़वी
ग़ज़ल
उस की बातें क्या करते हो वो लफ़्ज़ों का बानी था
उस के कितने लहजे थे और हर लहजा ला-फ़ानी था