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शेर
यूँ बढ़ी साअत-ब-साअत लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-फ़िराक़
रफ़्ता रफ़्ता मैं ने ख़ुद को दुश्मन-ए-जाँ कर दिया
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
दौलत अजब है ये बड़ी बढ़ती है जो बस बाँट कर
रहना अगर है ख़ुश तुम्हें बाँटो सदा सब को ख़ुशी
सदा अम्बालवी
ग़ज़ल
सरफिरा कोई बना है नाज़िम-ए-गुलशन 'सदा'
हुक्म है इक रंग के बस गुल खिलें गुलज़ार में