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ग़ज़ल
कलबा-ए-मेहनत-कशां को दे के ग़ैरत का चराग़
शौकत-ए-क़स्र-ए-ज़र-अफ़्शाँ बेचता फिरता हूँ मैं
शोरिश काश्मीरी
ग़ज़ल
शरीक-ए-ज़ुमरा-ए-मेहनत-कशाँ है शाइ'र भी
बहा-ए-सद-नफ़स-ए-ख़ूँ-चकाँ है इक मज़मूँ
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
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नज़्म
शाएर की तमन्ना
अगर इस गुलशन-ए-हस्ती में होना ही मुक़द्दर था
तो मैं ग़ुंचों की मुट्ठी में दिल-ए-बुलबुल हुआ होता
जमील मज़हरी
नज़्म
फूलों की बहार
देख कर बश्शाश हो जाता है क़ल्ब-ए-पुर-मेहन
फूल गुड़हल का है या आवेज़ा-ए-गोश-ए-चमन