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ग़ज़ल
शाम-ए-फ़ुर्क़त इंतिहा-ए-गर्दिश-ए-अय्याम है
जितनी सुब्हें हो चुकी हैं आज सब की शाम है
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
जरस है कारवान-ए-अहल-ए-आलम में फ़ुग़ाँ मेरी
जगा देती है दुनिया को सदा-ए-अल-अमाँ मेरी
सीमाब अकबराबादी
समस्त
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ग़ज़ल
जहान-ए-रंग-ओ-बू में मुस्तक़िल तख़्लीक़-ए-मस्ती है
चमन में रात भर बनती है और दिन भर बरसती है
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
मौज-ए-दरिया
ऐ हसीं साहिल मगर सोता है तू
तेरे हुस्न-ए-बे-ख़बर पर मेरी बेदारी निसार