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नज़्म
ये हमारा घर है
कमीन-गाहों से तीर पर तीर चल रहे हैं
क़दम क़दम पर हैं मूश-ख़ाने
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
नज़्म
फ़रेब
राहज़न हँसने लगे छुप के कमीं-गाहों में
हम-नशीं ये था फ़रंगी की फ़िरासत का तिलिस्म
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
तुम मुझे नहिं पाओगे
फिर भी तुम्हें मेरी रूह तक पहुँचने के लिए अपनी कमीं-गाहों के
रस्ते से गुज़रना होगा
शाइस्ता हबीब
नज़्म
एक क़िस्सा-गो का क़त्ल
वहाँ ख़ून की बू सूँघते आ पहुँचे थे
लश्करी अपनी कमीं-गाहों में महफ़ूज़ खड़े हँसते थे