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ग़ज़ल
खुला हर मंज़र-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र आहिस्ता आहिस्ता
छटा आख़िर ग़ुबार-ए-रहगुज़र आहिस्ता आहिस्ता
इक़बाल अंजुम
ग़ज़ल
ये करिश्मा-साज़ी-ए-इश्क़ की मिरी जान ज़िंदा नज़ीर है
जो फ़क़ीर था वो अमीर है जो अमीर था वो फ़क़ीर है
मंज़र अय्यूबी
ग़ज़ल
नख़चीर हूँ मैं कश्मकश-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र का
हक़ मुझ से अदा हो न दर-ओ-बस्त-ए-हुनर का
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
ग़ज़ल
चुने हैं बरसों दयार-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र से शीशे
लिपट गए हैं ख़याल के बाम-ओ-दर से शीशे
सय्यद मोहम्मद अहमद नक़वी
ग़ज़ल
जहान-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र का सबात ले के गया
वो सिर्फ़ दिल ही नहीं काएनात ले के गया