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ग़ज़ल
ख़ालिद मोईन
उद्धरण
सआदत हसन मंटो
ग़ज़ल
पता लगाना हुआ है दुश्वार कौन है ख़ल्त-मल्त किस का
है ज़ात उस की वजूद मेरा है जाँ किसी की बदन है कोई
शाैकत वास्ती
ग़ज़ल
ख़ला-मला हो के ग़ैर से कोई मूँग छाती पे दल रहा है
किसी के अरमान बुझ रहे हैं किसी का अरमाँ निकल रहा है
पंडित त्रिभुवननाथ ज़ुतशी ज़ार देहलवी
हास्य
क्या बताऊँ तुम्हें ख़ुद्दाम-ए-वतन का मीनू
पी के क्या खाते हैं क्या खा के पिया करते हैं