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ग़ज़ल
आतिश-ए-इश्क़ को सीने में अबस भड़काया
अब भला खींचूँ हूँ मैं आह-ए-शरर-बार कि तू
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
नूह नारवी
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रेख़्ता शब्दकोश
khi.nchan
खिंचनکِھنچَن
तनाव, ऐंठन
man-khii.nchuu
मन-खींचूمَن کِھینچُو
دل لُبھانے والا ، دلربا ، دل چسپ ۔ جیو کو تھنڈی ، من کو کھینچو ، مہ نمن ۔
vo baal khii.nchuu.n ki jis kii ja.D duur ho
वो बाल खींचूँ कि जिस की जड़ दूर होوہ بال کِھینْچُوں کہ جِس کی جَڑ دُور ہو
सारे छुपे छुपाए दोष प्रकट कर दूँ, सारी दुनिया में अपमान का माध्यम एवं तिरस्कीर एवं अपयश का कारण बनूँ
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नज़्म
राशिदा-बाजी और एक लड़की
दे के फिर एक घूँसा उन्हों ने कहा
कान खींचूँ तुम्हारा तो मैं हँस पड़ी
राजा मेहदी अली ख़ाँ
ग़ज़ल
कहाँ है तू कि में खींचूँ हूँ राह में तेरी
बिसान-ए-नक़्श-ए-क़दम इंतिज़ार आँखों से