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शेर
हल्क़ा-ए-दिल से न निकलो कि सर-ए-कूचा-ए-ख़ाक
ऐश जितने हैं इसी कुंज-ए-कम-आसार में हैं
अरशद अब्दुल हमीद
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ग़ज़ल
ज़ाहिद-ए-ख़ुश्क-ओ-ख़ुनुक से कब हो सोहबत उन की गर्म
आतिश-ए-तर से 'मुहिब' जिन का लबालब ज़र्फ़ है
वलीउल्लाह मुहिब
नज़्म
ये घर जल कर गिरेगा
ख़ुदा-ए-ख़ुश्क-ओ-तर की सल्तनत इक घर नहीं है
और मौसम हैं हवादिस के
मोहम्मद अनवर ख़ालिद
ग़ज़ल
ऐ ख़ुशा-वक़्ते कि शोख़-ए-तरह-दार आ ही गया
हाँ वो जान-ए-मय-कदा मस्ताना-वार आ ही गया