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नज़्म
अगर ख़ुदा मिल गया मुझ को
न किब्र-सिनी न ज़ोफ़ न लाचारी से पनाह माँगूँगा
न दुनिया जहान की ख़ुशियाँ न शान-ओ-शौकत ही
अबु बक्र अब्बाद
ग़ज़ल
क़ब्र और शह्र में कुछ फ़र्क़ नहीं है 'सानी'
बस यही रोज़ कहीं सुब्ह को जाते हुए हम
महेंद्र कुमार सानी
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नज़्म
यूसुफ़-ए-सानी
मैं चाह-ए-कनआँ में ज़ख़्म-ख़ुर्दा पड़ा हुआ हूँ
ज़मीं में ज़िंदा गड़ा हुआ हूँ
हिमायत अली शाएर
नज़्म
नई भिकारन
हर दर पे पहुँच कर रो देना दुख पेट का सब से कह जाना
जब सामने आ जाता है कोई फैला कर हाथ को रह जाना
सरीर काबिरी
ग़ज़ल
आह-ए-सोज़ाँ सीं मिरे दामन-ए-सहरा में 'सिराज'
क़ब्र-ए-मजनूँ पे चराग़ाँ न हुआ था सो हुआ