aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "kin-min"
बे-मौसम बारिश की सूरत देर तलक और दूर तलकतेरे दयार-ए-हुस्न पे मैं भी किन-मिन किन-मिन बरसूँगा
कभी बूंदों की किन-मिन रागनी सीकभी बादल की गुर्राहट का मौसम
तवे पर बूँद पड़ने का 'अमल हैमैं जिस मिट्टी पे किन-मिन कर रहा हूँ
सात सुरों में बहता रात का ये पहला पहर औरकिन-मिन सा बरसता तुम्हारा नर्म एहसास
अभी कुछ देर में हो जाएगा आँगन जल-थलअभी आग़ाज़ है बारिश का अभी किन-मिन है
क़ासिद क्लासिकी शायरी का एक मज़बूत किर्दार है और बहुत से नए और अनोखे मज़ामीन इसे मर्कज़ में रख कर बांधे गए हैं। वो आशिक़ का पैग़ाम ले कर माशूक़ के पास ख़त्म हो जाता है। इस तौर पर आशिक़ क़ासिद को अपने आप से ज़्यादा ख़ुश-नसीब तसव्वुर करता है कि इस बहाने उसे महबूब का दीदार और उस से हम-कलामी नसीब हो जाती है। क़ासिद कभी जलवा-ए-यार की शिद्दत से बच निकलता है और कभी ख़त के जवाब में उस की लाश आती है। ये और इस क़िस्म के बहुत से दिल-चस्प मज़ामीन शायरों ने बांधे है। हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़िए और लुत्फ़ लीजिए।
ख़ुदा-ए-सुख़न कहे जाने वाले मीर तक़ी मीर उर्दू अदब का वो रौशन सितारा हैं, जिन्होंने नस्ल-दर-नस्ल शायरों को मुतास्सिर किया. यहाँ उनकी ज़मीन पर लिखी गई चन्द ग़ज़लें दी जा रही हैं, जो मुख़्तलिफ़ शायरों ने उन्हें खिराज पेश करते हुए कही.
नूनमीम राशिद उर्दू के प्रमुख शायरों में से एक हैं, जिन्होंने अपनी ख़ूबसूरत और सजावटी शैली से इस विधा को वास्तविक पहचान दी है। इस संग्रह में उनकी कविताओं के चयन के साथ-साथ उन कविताओं की नाटकीय रिकॉर्डिंग भी शामिल है, ताकि आप इन नज़्मों को सुन कर भी लुत्फ़ उठा सकें।
Nepolian Ki Man
शरफ़ुद्दीन
अनुवाद
Khudawand Ki Man
मीम ऐन अलिफ़
Zikr-e-Meer
मीर तक़ी मीर
आत्मकथा
Meer Ki Aap Beeti
Pak-o-Hind ki Jadi Bootiyan
सूफ़ी लछमन प्रशाद
आयुर्वेद
Hyderabad Mein Aariya Samaj Ki Tahreek
Meer Taqi Meer Aur Noon Meem Rashid Ki Yad Mein: Shumara Number-018
मोहम्मद फ़ख़रुल हक़ नूरी
बाज़याफ़्त, लाहौर
Hindustan Ameer Khusro Ki Nazar Mein
सय्यद सबाहुद्दीन अब्दुर्रहमान
Meer Anees Ki Shayari Mein Rangon Ka Istemal
ज़मीर अख़्तर नक़वी
Urdu Ke Zarb-ul-Masal Ashaar
मोहम्मद शम्सुल हक़
अशआर
Tirange Ki Chhaon Mein
इब्राहिम जलीस
Farhang-e-Kalam-e-Meer
अब्दुर्रशीद
शब्द-कोश
Ghalib Ki Shaeri Mein Tashbeehat-o-Istiarat
असरार अहमद
Shibli Muaisrin Ki Nazar Mein
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
अल्लामा इक़बाल
मोहम्मद मुइज़्जुद्दीन
बीते सावन कह रहे हैं ये छमा-छम थे कभीअब तो हैं गोया फ़क़त किन-मिन ये मेरे रात-दिन
ऑफ़र अच्छी जो कान में आईचेंज फ़ौरन बयान में आई
किस की आवाज़ कान में आईदूर की बात ध्यान में आई
कान में बालाऔर गले में
काश कि मैं भी होता पत्थरगर था उन को प्यारा पत्थर
यादों की मैं बारात लिए आया हूँऔर अश्कों की सौग़ात लिए आया हूँ
कहा मजनूँ से ये लैला की माँ नेकि बेटे क्यूँ पड़ा है शहर से दूर
یاران نبی میں تھی لڑائی کس میںالفت کی نہ تھی جلوہ نمائی کس میں
हम हुए तुम हुए कि 'मीर' हुएउस की ज़ुल्फ़ों के सब असीर हुए
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