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ग़ज़ल
पारसा हम-राह ले जाएँगे पिंदार-ए-अमल
हम तो अपने साथ उन की ख़ाक-ए-पा ले जाएँगे
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
वही रिवायत गज़ीदा-दानिश वही हिकायत किताब वाली
रही हैं बस ज़ेर-ए-दर्स तेरे किताबें पिछले निसाब वाली
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
बे-अमल लोगों से जब पूछो तो कहते हैं की 'शान'
हम अज़ल से क़िस्मत-ए-नाकाम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
सुब्ह-ए-शब-ए-इंतिज़ार
चराग़ राह में उस के अमल से जलने लगे
लो आज सुब्ह-ए-शब-ए-इंतिज़ार आ ही गई
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
पोशीदा लफ़्ज़ लफ़्ज़ में है दास्तान-ए-कर्ब
'क़ुदसी' किताब-ए-ज़ीस्त का हर बाब देखना
औलाद-ए-रसूल क़ुद्सी
शेर
देखने वाले ये कहते हैं किताब-ए-दहर में
तू सरापा हुस्न का नक़्शा है मैं तस्वीर-ए-इश्क़