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ग़ज़ल
कहूँ किस से ब-जुज़ तेरे ख़ुदाया आरज़ू दिल की
मुराद अपनी हमेशा तुझ से ही बस मैं ने हासिल की
महाराजा सर किशन परसाद शाद
नज़्म
अक़्ल से लेता न काम अगर
टोपियों की एक गठरी बाँध कर
कर लिया एक शख़्स ने अज़्म-ए-सफ़र
उफ़ुक़ देहलवी
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ग़ज़ल
ज़ाद-ए-रह भी नहीं बे-रख़्त-ए-सफ़र जाते हैं
सख़्त हैरत है कि ये लोग किधर जाते हैं
रियासत अली ताज
नज़्म
फ़रियाद-ए-बेवा
बेवा हैं नाला-ए-ग़म है बा-असर हमारा
तड़पाएगा दिलों को दर्द-ए-जिगर हमारा
मास्टर बासित बिस्वानी
ग़ज़ल
गए दिनों का सुराग़ ले कर किधर से आया किधर गया वो
अजीब मानूस अजनबी था मुझे तो हैरान कर गया वो
नासिर काज़मी
नज़्म
हम ने ख़्वाहिशों के सारे परिंदे उड़ा दिए हैं
शुरूअ' शुरूअ' में अचंभे अच्छे लगते थे
शौक़ भी था और दिन भी भले थे
किश्वर नाहीद
नज़्म
वज़ीर का ख़्वाब
मैं ने इक दिन ख़्वाब में देखा कि इक मुझ सा फ़क़ीर
गर्दिश-ए-पैमाना-ए-इमरोज़-ओ-फ़र्दा का असीर