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कुल्लियात
लख़्त-ए-जिगर तो अपने यक-लख़्त रो चुका था
अश्क-ए-फ़क़त का झमका आँखों से लग रहा था
मीर तक़ी मीर
कुल्लियात
हो चुका ख़ून-ए-जिगर रोना नहीं कुछ कम हनूज़
हैं मिज़ा दस्तूर-ए-साबिक़ ही ये मेरी नम हनूज़
मीर तक़ी मीर
कुल्लियात
रो चुका ख़ून-ए-जिगर सब अब जिगर में ख़ूँ कहाँ
ग़म से पानी हो के कब का बह गया मैं हूँ कहाँ
मीर तक़ी मीर
कुल्लियात
सीना है चाक-ए-जिगर पारा है दिल सब ख़ूँ है
तिस पे ये जान-ब-लब आमदा भी महज़ूँ है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है