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कुल्लियात
आज-कल से कुछ न तूफ़ाँ-ज़ा है चश्म-ए-गिर्या-नाक
मौजज़न बरसों से है दरिया है चश्म-ए-गिर्या-नाक
मीर तक़ी मीर
कुल्लियात
मुहय्या जिस कने अस्बाब-ए-मुल्की और माली थे
वो अस्कंदर गया याँ से तो दोनों हाथ ख़ाली थे
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
बुत भी इस में रहते थे दिल यार का भी काशाना था
एक तरफ़ काबे के जल्वे एक तरफ़ बुत-ख़ाना था
बेदम शाह वारसी
कुल्लियात
मस्ती में जा-ओ-बेजा मद्द-ए-नज़र कहाँ है
बे-ख़ुद हैं उस की आँखें उन को ख़बर कहाँ है
मीर तक़ी मीर
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नज़्म
समुंदर
है समुंदर दीद में तेरी फ़ुसूँ-कारी बहुत
देखने वालों की करता है तो दिलदारी बहुत
सलमान ग़ाज़ी
नज़्म
महात्मा-गाँधी
सुना रहा हूँ तुम्हें दास्तान गाँधी की
ज़माने-भर से निराली है शान गाँधी की