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नज़्म
ख़ूब-सूरत मोड़
न तुम मेरी तरफ़ देखो ग़लत-अंदाज़ नज़रों से
न मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाए मेरी बातों से
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
मुबारक सिद्दीक़ी
समस्त
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ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
लड़खड़ाए पैर फिर क्यूँ क्यूँ नज़र खो सी गई
सिर्फ़ तेरी याद थी हाथों में साग़र भी न था
दिनाक्षी सहर
शेर
जो लड़खड़ाए क़दम मय-कदे में मस्तों के
बग़ल में हज़रत-ए-नासेह थे बढ़ के थाम लिया