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ग़ज़ल
दिल-ए-इंसाँ अगर शाइस्ता-ए-असरार हो जाए
लब-ए-ख़ामोश-फ़ितरत ही लब-ए-गुफ़्तार हो जाए
जिगर मुरादाबादी
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ग़ज़ल
क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार देखी गर लब-ए-ख़ामोश की
क्यों करेगा आज़माइश सब्र-ए-पर्दा-पोश की
डॉ. हबीबुर्रहमान
ग़ज़ल
लब-ए-ख़ामोश में पिन्हाँ है कोई राज़ नहीं
ज़िंदगी साज़ है जिस में कोई आवाज़ नहीं
आदित्य पंत नाक़िद
ग़ज़ल
गर ग़ुंचा-ए-मह्जूब तिरी वज़' को देखे
अंदाज़-ए-हया-ए-लब-ए-ख़ामोश में मर जाए