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ग़ज़ल
मंज़िल-ए-दिल मिली कहाँ ख़त्म-ए-सफ़र के बाद भी
रहगुज़र एक और थी राहगुज़र के बाद भी
अली जवाद ज़ैदी
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ग़ज़ल
किसी से ख़ौफ़ खाते हैं न दब कर बात करते हैं
सदाक़त के पयम्बर जब भी हक़ पर बात करते हैं
ज़हीर अहमद ज़हीर
ग़ज़ल
चराग़ उस ने बुझा भी दिया जला भी दिया
ये मेरी क़ब्र पे मंज़र नया दिखा भी दिया
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
नज़्म
होली
दिल में उठती है मसर्रत की लहर होली में
मस्तियाँ झूमती हैं शाम-ओ-सहर होली में