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ग़ज़ल
ये किस ने खींच दी साँसों की लक्ष्मण-रेखा
कि जिस्म जलता है बाहर जो पाँव धरते हैं
कृष्ण बिहारी नूर
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कुल्लियात
जो बहस जी से वफ़ा में है सो तो हाज़िर है
पे फ़र्त-ए-शौक़ से मुझ को मलाल-ए-ख़ातिर है