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ग़ज़ल
कैसी चमक कहाँ की खटक उफ़ रे बे-हिसी
हैं मस्त ज़ौक़-ए-लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-निहाँ से हम
पंडित जगमोहन नाथ रैना शौक़
ग़ज़ल
दिल अगर शाइस्ता-ए-दर्द-ए-निहाँ पैदा करें
हर ग़म-ए-जाँ-काह से आराम-ए-जाँ पैदा करें
तिलोकचंद महरूम
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ग़ज़ल
मदद तो इतनी कर ऐ शिद्दत-ए-दर्द-ए-निहाँ मेरी
निकल जाए तड़प कर जिस्म से रूह-ए-रवाँ मेरी
मुंफरीद गोरखपुरी
ग़ज़ल
मदद इतनी तो कर ऐ जज़्बा-ए-दर्द-ए-निहाँ मेरी
तमन्ना है वो मेरे मुँह से सुन लें दास्ताँ मेरी