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ग़ज़ल
ख़ाक-ए-आशिक़ से उगाता है मुग़ीलाँ का दरख़्त
उस की मिज़्गाँ का है मरक़द में भी खटका बाक़ी
आशिक़ अकबराबादी
शेर
ख़ाक-ए-आशिक़ से जो उगता है मुग़ीलाँ का दरख़्त
उस की मिज़्गाँ का है मरक़द में भी खटका बाक़ी
आशिक़ अकबराबादी
ग़ज़ल
शम-ए-महफ़िल हूँ न आशिक़ न मैं बू-ए-गुल हूँ
मह-जबीं क्यूँ मुझे आँचल की हवा देते हैं
आशिक़ अकबराबादी
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ग़ज़ल
मिरे नालों का 'आशिक़' रंग उड़ाया अंदलीबों ने
ख़िराम-ए-यार की शोहरत हुई सारे चकोरों में
आशिक़ अकबराबादी
ग़ज़ल
रब्त कुछ दाग़-ओ-जिगर का तो है चस्पाँ 'आशिक़'
वर्ना इस दौर में कोई भी किसी का न हुआ
आशिक़ अकबराबादी
ग़ज़ल
मिले न क्यूँ तुम्हें शाहों का मर्तबा 'आशिक़'
बहुत दिनों दर-ए-ख़्वाजा पे है गदाई की
आशिक़ अकबराबादी
ग़ज़ल
दाग़ दिल पर नाला लब पर चश्म गिर्यां सीना रीश
'आशिक़'-ए-शोरीदा को किस दम फ़राग़ आया है हाथ
आशिक़ अकबराबादी
ग़ज़ल
मैं आशिक़-ए-गेसू हूँ बहलता है यहीं दिल
क्यूँकर ये कहूँ क़ब्र की वहशत नहीं अच्छी