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ग़ज़ल
हो गई मख़्मसा-ए-क़हत-ओ-गिरानी में कमी
शुक्र है साल-ए-गुज़िश्ता से ये साल अच्छा है
इस्माइल मेरठी
ग़ज़ल
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
नज़्म
ए'तिराफ़
शहरयारों से रक़ाबत का जुनूँ तारी था
बिस्तर-ए-मख़मल-ओ-संजाब थी दुनिया मेरी
असरार-उल-हक़ मजाज़
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नज़्म
एक लड़का
मुझे इक़रार है उस ने ज़मीं को ऐसे फैलाया
कि जैसे बिस्तर-ए-कम-ख़्वाब हो दीबा-ओ-मख़मल हो
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
समुंदर का बुलावा
गिरते हैं इक फ़र्श-ए-मख़मल बनाते हैं जिस पर
मिरी आरज़ूओं की परियाँ अजब आन से यूँ रवाँ हैं
मीराजी
ग़ज़ल
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
मुलाइम पेट मख़मल सा कली सी नाफ़ की सूरत
उठा सीना सफ़ा पेड़ू अजब जोबन की नारी है