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नज़्म
बंजारा-नामा
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
मफ़रूर न हो तलवारों पर मत फूल भरोसे ढालों के
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
एक लड़का
इसे हम-राह पाता हूँ ये साए की तरह मेरा
तआक़ुब कर रहा है जैसे मैं मफ़रूर मुल्ज़िम हूँ
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
बे-कराँ रात के सन्नाटे में
अपने दस्ते से कई रोज़ से मफ़रूर हूँ मैं!
ये मिरे दिल में ख़याल आता है
नून मीम राशिद
ग़ज़ल
वो ऐसी ख़ंदा-पेशानी से हर मारूज़ा सुनते हैं
ये समझे अर्ज़ करने वाला अब मंज़ूर होता है
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
ज़र्रे ज़र्रे में तो वो ख़ुद है मकीं वर्ना हम
छुप न जाएँ कहीं मफ़रूर न हो जाएँ कहीं