aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "mah-laqaa"
मह लक़ा चंदा
1768 - 1824
शायर
मा ला बुद्दा मिन्हू
अनुवादक
लाल कांजी मल सबा
born.1792
लाला जंगली मल
संपादक
लाल राम दत्ता मल एण्ड संस पब्लिशर्स ताजिरान-ए-कुतुब, लाहाैर
पर्काशक
हासिल उस मह-लक़ा की दीद नहींईद है और हम को ईद नहीं
ज़माने में वो मह-लक़ा एक हैहज़ारों में वो दिलरुबा एक है
उन को आँखें दिखा दे टुक साक़ीचाहते हैं जो बार बार शराब
वाह क्या ख़ूब मह-लक़ा देखाजल्वा उस का हर एक जा देखा
मह-लक़ाمہ لقا
moon-faced
Mah Laqa
संकलन
Deewan-e-Mah Laqabai Chanda
दीवान
Maah Laqa Aur Doosari Nazmein
अज़ीज़ अहमद
नज़्म
Gulzar-e-Mahlaqa
कविता
Gulzaar-e-Mah Liqaa
समीना शौकत
ज़ुबैदा सुलताना
उपन्यास
Mah-Laqaa
Mah-e-laqa
राहत अज़्मी
Mah-Liqa
अतीया परवीन बिलग्रामी
हयात-ए-माह लक़ा चंदा
जीवनी
Man Raj
लाला मन्नू लाल
सिरी भागवत
लाला अमानत राय देहल्वी
हिन्दू-मत
Shri Kamdev
लाला देवेदास
आलम तिरी निगह से है सरशार देखनामेरी तरफ़ भी टुक तो भला यार देखना
जो सूरत देख ली उस मह-लक़ा कीनज़र आई मुझे क़ुदरत ख़ुदा की
साक़ी है गरचे बे-शुमार शराबनहीं ख़ुश-तर सिवाए यार शराब
गुल के होने की तवक़्क़ो पे जिए बैठी हैहर कली जान को मुट्ठी में लिए बैठी है
'चंदा' रहे परतव से तिरे या अली रौशनख़ुर्शीद को है दर से तिरे शाम-ओ-सहर फ़ैज़
दिल में मेरे फिर ख़याल आता है आजकोई दिलबर बे-मिसाल आता है आज
रहे रक़ीब से बाहम वो सीम-बर महज़ूज़हुआ न आह का अपने कभी असर महज़ूज़
संग-ए-रह हूँ एक ठोकर के लिएतिस पे वो दामन सँभाल आता है आज
गुल के होने की तवक़्क़ो' पे जिए बैठी हैहर कली जान को मुट्ठी में लिए बैठी है
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