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ग़ज़ल
मिरी ग़ज़लें पढ़ें सब अहल-ए-दिल और मस्त हो जाएँ
मय-ए-जज़्बात लाया हूँ मैं लफ़्ज़ी आबगीनों में
अख़्तर अंसारी
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
नशा उतरा मगर अब भी तुम्हारी मस्त आँखों से
पिए थे जो मय-ए-उल्फ़त के साग़र याद आते हैं
ए. डी. अज़हर
ग़ज़ल
शाख़-ए-जज़्बात पे नग़्मात का मंज़र ख़ामोश
ग़म की आग़ोश में अरमाँ का कबूतर ख़ामोश
औलाद-ए-रसूल क़ुद्सी
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ग़ज़ल
कोई बादा-कश जिसे मय-कशी का तरीक़-ए-ख़ास न आ सका
ग़म-ए-ज़िंदगी की कशा-कशों से कभी नजात न पा सका
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
कुछ लिहाज़-ए-जज़्ब-ए-उल्फ़त कुछ ख़याल-ए-ज़ब्त-ए-शौक़
किस तरह हम उन से अपने ग़म का अफ़्साना कहें
कँवल एम ए
ग़ज़ल
ये बात अलग साक़ी नवाज़े न नवाज़े
हम मय-कदा-ए-इश्क़ के मय-ख़्वार रहे हैं