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ग़ज़ल
हम से जिस के तौर हों बाबा देखोगे दो एक ही और
कहने को तो शहर-ए-कराची बस्ती दिल-ज़दगाँ की है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
दिल-आशोब
दिल हाथ से इस के वहशी हिरन की मिसाल गया
हम अहल-ए-वफ़ा रंजूर सही, मजबूर नहीं
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
दिल से मजबूर भी हम साहिब-ए-पिंदार भी हम
आस्ताँ से तिरे कतरा के गुज़र आते हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
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ग़ज़ल
उस तरफ़ वो तो इधर हम हैं परेशाँ 'बेबाक'
ख़्वाहिश-ए-दीद किसी तौर न टाली जाए
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
नज़्म
इंक़लाब
तुझे भी देखेंगे मजबूर-ए-फ़ाक़ा-ओ-अफ़्लास
तुझे भी क़ैद-ए-ग़म-ओ-इज़्तिराब देखेंगे
अहमक़ फफूँदवी
ग़ज़ल
मजबूर-ए-जब्र-ए-इश्क़ हैं मुख़्तार-ए-ज़ब्त-ए-ग़म
तुम ही ज़रा बताओ कि क्या बन गए हैं हम