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ग़ज़ल
वो कहते हैं न समझूँगा तुझे 'मज्ज़ूब' मैं आशिक़
कि जब तक कूचा ओ बाज़ार में रुस्वा न देखूँगा
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
ऐ जान-ए-'ज़फ़र' 'हाफ़िज़'-ओ-'सादी' की क़फ़ा में
अब वारिस-ए-मय-ख़ाना-ए-शीराज़ हमीं हैं
सिराजुद्दीन ज़फ़र
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ग़ज़ल
अब शाइ'री में और किसी को भी दें जगह
मज्ज़ूब-ओ-मस्त-ओ-फ़क़्र-ओ-क़लंदर निकाल कर
इरशाद अहमद नियाज़ी
ग़ज़ल
तर-दिमाग़ी जो बढ़े नश्शा-ए-मअनी की 'मुनीर'
कासा-ए-सर मुझे जाम-ए-मय-ए-शीराज़ हुआ
मुनीर शिकोहाबादी
नज़्म
ऐ हबीब-ए-अम्बर-दस्त!
ये शेर-ए-हाफ़िज़-ए-शीराज़, ऐ सबा! कहना
मिले जो तुझ से कहीं वो हबीब-ए-अम्बर-दस्त
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
अब सिकंदरपूर रश्क-ए-ख़ित्ता-ए-शीराज़ है
लाए हैं तशरीफ़ उस्ताद-ए-सुख़न-दाँ इन दिनों
मोहम्मद इब्राहीम आजिज़
नज़्म
ख़ुश-आमदीद
तुर्क-ए-शीराज़ हो तुम हाफ़िज़-ए-शीराज़ हूँ मैं
अब समरक़ंद-ओ-बुख़ारा है तुम्हारी ख़ातिर
अंजुम आज़मी
नज़्म
ख़ुश-आमदीद
तुर्क-ए-शीराज़ हो तुम हाफ़िज़-ए-शीराज़ हूँ मैं
अब समरक़ंद-ओ-बुख़ारा है तुम्हारी ख़ातिर