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ग़ज़ल
क्या कुछ न कर दिखाऊँ पर इक दिन के वास्ते
मिलता भी हम को मंसब-ए-हफ़्त-आसमाँ नहीं
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
नज़्म
इंसान
ये ज़मीं थीं ज़िल्लत-ए-आफ़ाक़ जिस की पस्तियाँ
रिफ़अ'तों में रू-कश-ए-हफ़्त-आसमाँ होने को है
फ़ज़लुर्रहमान
नज़्म
ख़िराज-अक़ीदत
इस चमन की सरज़मीं है रू-कश-ए-हफ़्त-आसमाँ
इस चमन में ताइर-ए-अर्श-आशियाँ पैदा हुआ
असरार-उल-हक़ मजाज़
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नज़्म
दार-ओ-रसन
दिमाग़ बर-सर-ए-हफ़्त-आसमाँ था देहली का
ख़िताब-ए-ख़ित्ता-ए-हिन्दोस्ताँ था देहली का
मोहम्मद अली तिशना
ग़ज़ल
आज क्या होने को है ऐ गर्दिश-ए-हफ़्त-आसमाँ
हर सितारा लर्ज़ा-बर-अंदाम है मेरे लिए
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
फेर था क़िस्मत का वो चक्कर था मेरे पाँव का
जिस को 'शो'ला' गर्दिश-ए-हफ़्त-आसमाँ समझा था मैं